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उप॑ त्वा जु॒ह्वो॒३॒॑ मम॑ घृ॒ताची॑र्यन्तु हर्यत । अग्ने॑ ह॒व्या जु॑षस्व नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upa tvā juhvo mama ghṛtācīr yantu haryata | agne havyā juṣasva naḥ ||

पद पाठ

उप॑ । त्वा॒ । जु॒ह्वः॑ । मम॑ । घृ॒ताचीः॑ । य॒न्तु॒ । ह॒र्य॒त॒ । अग्ने॑ । ह॒व्या । जु॒ष॒स्व॒ । नः॒ ॥ ८.४४.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:36» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

अग्निहोत्र के समय अग्निसंज्ञक परमात्मा स्तवनीय है, यह उपदेश इससे देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वगत सुसूक्ष्म ईश ! (मे) मुझ उपासक का (स्तोमम्) स्तोत्र (जुषस्व) ग्रहण कीजिये। हे भगवन् ! (अनेन) इस (मन्मना) मननीय चिन्तनीय मनोहर स्तोत्र से पूजित और प्रार्थित होकर आप (वर्धस्व) हमको शुभकार्य्य में बढ़ावें। हे ईश (नः) हमारे (सूक्तानि) शोभन वचनों को (प्रति+हर्य) सुनने की इच्छा करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - अग्निहोत्रकाल में नाना स्तोत्र बनाकर ईश्वर की कीर्ति गाओ और सुन्दर भाषा से उसकी स्तुति और प्रार्थना करो ॥२॥
टिप्पणी: अग्नि यह शब्द जिन धातुओं से बनता है, उससे सर्वाधार सर्वशक्ति सुसूक्ष्म आदि अर्थ निकलते हैं ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा

अग्निहोत्रसमयेऽग्निसंज्ञः परमात्मा स्तोतव्य इत्युपदिशति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने सर्वगत ! सुसूक्ष्म ! मे=ममोपासकस्य। स्तोमं=स्तोत्रम्। जुषस्व=गृहाण। हे भगवन् ! अनेन मन्मना=मननीयेन स्तोत्रेण पूजितः प्रार्थितस्त्वम्। अस्मान्। वर्धस्व=वर्धय। पुनः। नः=अस्माकम्। सूक्तानि= सुवचनानि। प्रतिहर्य=प्रतिकामय ॥२॥